Book Title: Jain Darshan Bhavna Part 02
Author(s): Punyasheelashreeji
Publisher: Sanskrit Pragat Adhyayan Kendra
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५०.
ममत्तिं परिवजामि णिम्ममतिमुवहिन्दो । आलंबणं च मे आदा अवसेसाई वोसरे ॥५७।। आदा खु मज्झ णाणे आदा मे दंसणे चरित्ते य । आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे॥५८॥ एगो मे सासओ अप्पा णाणदंसण लक्षणो । सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ।।५९।। भावेह भावसुद्धं अप्पा सुविसुद्धणिममलं चेव । लहु चउगइ चइऊणं जइ इच्छासे सासयं सुक्खं ॥६०|| जो जीवो भावंतो जीवसहावं सुभावसंजुत्तो। सो जरमरणविणासं कुडइ फुडं लहइ णिव्वाणं ।।६१।। जीवो जिणपण्णत्तो णाणसहाओ य चेयणासहिओ। सो जीवो णायच्चों कम्मक्खयकारणाणिमित्ते ॥६२|| भावप्राभूत गा.५५ ते ६५ पृ. ९० ते ९४ जेसिंजीवसहावो णत्थि अभावो यस ते होंति भिण्णदेहा सिद्धा वचिगोयरमतीदा ।।६३|| अरसमरुवमंगधं अव्वतं चेयणागुणमसददं । जाणमलिंगग्गहणं जीवमणिदिदट्ठसंठाणं ।।६।। भावहि पंचपयारं णाणं अण्णाणणासणं सिग्धम् । भावणभाविवियसहिओ दिवसिवसुहभायणो होइ ।।६५|| भावप्राभृत गा.६३ ते ६५ पृ. ९३ ते ९५ खयरामरमणुकरंजलिमालाहिं च संभुया विउला । चक्कहररायलच्छी लब्भई बोही मुभावेणं ।।७५।। भावं तिविहपयारं सुहासुहं सुद्धमेव णायत्वें । असुहंच अट्टरुदं सुह धम्मं जिणवरिदेहि ॥७६।। सुद्धं सुद्ध सहावं अप्प अप्पमिं तं य णायव्यं इदि जिणवरेहिं भणियं ज सेयं तं समायरह ॥७७|| भावप्राभूत गा. ७५ ते ७७, पृ. १००

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