Book Title: Jain Darshan Bhavna Part 02
Author(s): Punyasheelashreeji
Publisher: Sanskrit Pragat Adhyayan Kendra

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Page 323
________________ (७१२) ८०. एकै अरवर पीवका पढे सु पंडित होई - कबीरग्रंथावली सा. ९, पृ. १०४ राएं रंगिए हियवडए देउ ण दीसइ संतु । दप्पणि मइलए बिंबु जिम एइड जाणिणिभंतु ।। परमात्मप्रकाश १/१२०, पृ. हलिसहि काइ करइ सो दप्पणु । जहि पडिबिंब ण दीसइ अप्पणु ।। धंधवालु मो जग पडितासइ । धरि अच्छंतु ण घरपइ दीसई ।। पाहुड दोहा १२२ हिरदा अतिर आरसों मुख देख्या न जाइ । मुख तौ तौ परि देखिए, जे मनकी दुविद्या जाइ ।। कबीर ग्रंथावली सा. ८, पृ. ८२. ८४. ८५. जो दरसन देख्या चहिये तो दरपन मंजत रहिये ।। जब दरपन लागे काई, तब दरसन किया न जाइ ।। कबीर ग्रंथावली पद २६१, पृ. ४११ सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर सोय। जैसे बाती दीपकी कटि उजियार होय - कबीर दोहा सा. २७७, पृ. ९५ भक्तिमार्गनु रहस्य पृ. १८३, १८४ भावयामि भवावर्ते भावनाः प्रागभाविता: भावये भाविता नेमि भव भावाय भावनः ।।२३८।। आत्मानुशासन, श्रीगुणभद्राचार्य गा. २३८, पृ. १४८ आत्मशुद्धोपयोग ले. श्री. बुद्धिसागरसूरीश्वरजी गाथा ५२४, ५२५, ५२८, पृ. १०५ तत्त्वार्थ सूत्र ९/१, पृ. २०६ तत्त्वार्थ सूत्र ९/४, पृ. २०६ आवश्यक नियुक्ति दीपिका पृ. २०४ ८७. ८८.

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