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जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [८५ बृष्णा रहितता, परम भाव, शाति इत्यादि उसी समरसी भावके ही भाव हैं इन सबका प्रयोजन मात्मव्यानका सम्बन्ध है।
इनमें जो धर्मविचय शब्द या है-ऐसा ही शब्द जैन सिद्धातमे धर्मभ्यानके भेदोंमें आया है। देखो तत्वार्य सूत्र
" माज्ञापायविपाकसस्थानविचयाय धर्म्य ॥३६॥९
धर्मध्यान चार तरहका है (१) मज्ञ'विचय-शास्त्रकी माज्ञाके अनुसार तत्वका विचार, (२) अपाय विचय-मेरे व अन्योंके राग द्वेष मोहका नाश कैसे हो, (३) विपाक विचय-कर्मोके अच्छे या बुरे फलको विचारना, (४) सस्थान विचय-लोकका या अपना स्वरूप विचारना।
बोधि शब्द भी जैनसिद्धातमे इसी अर्थमें माया है। देखो बारह भावनाओं के नाम। पहले सर्वातवसूत्रमें कहे है। ११वीं भावना बोधि दुर्लभ है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, गर्मित परम ज्ञान या आत्मज्ञानका लाभ होना बहुत दुर्लभ है ऐसी भावना करनी चाहिये।
(५) पाचमी बात यह बताई है कि वह भिक्षु चार बातोंको ठीक२ जानता है कि दुख क्या है, दुखका कारण क्या है। दुखका निरोध क्या है तथा दुख निरोधका क्या उपाय है ।
जैन सिद्धातमें भी इसी बातको बतानेके लिये कर्मका सयोस जहातक है वहातक दुख है । कर्म सयोगका कारण मानव और बध तत्व बताया है। किन२ भावोंसे कर्म भाकर बध जाते हैं, दुखका निरोध कर्मका क्षय होकर निर्वाणका लाभ है। निर्वाणका