________________
१२२ ।
दूसरा भाग ।
होता है । इमीको जैन सिद्धातमें केवलज्ञान कहा है । क्षीणाखव साधु सयोग बली जिन होजाता है वह सर्वज्ञ वीतराग कृतकृत्य मत होजाता है वही शरीर के अनमें सिद्ध परमात्मा निर्वाणरूप होजाता है ।
ज में कहा है कि निर्वाणकी प्राप्तिके खोल दिया जिसका मतलब वही है कि देनेवाला सानुभव रूप मार्ग खोल दिया यही वहा निर्वाण में भी परमानद है । वह अमृत ऊमर रहता है । यह सव कथन जैनसिद्धातमें मिलता है । जैन सिद्धात के कुछ वाक्य
लिये अमृत द्वार
अमृतमई आनन्दको
निर्वाणका साधन है
पुरुषार्थसिद्धयुपाय में कहा है
मुख्योपचार विवरण निरस्तदुस्तर विनेयदुर्योधः । व्यवहार निश्चयज्ञा प्रवर्तयन्ते जगति तीर्थम् ॥ ४ ॥
भावार्थ- जो उपदेश दाता व्यवहार और निश्चय मार्गको जान
"
नेवाले हैं वे कभी निश्चयको कभी व्यवहारको मुख्य कहकर शिष्यों का कठिन से कठिन अज्ञानको मेट देते हैं वे ही जगत मे धर्मतीर्थका प्रचार करते है | स्वानुभव निश्चय मोक्षमार्ग है, उसकी प्राप्ति के लिये बाहरी व्रताचरण आदि व्यवहार मोक्षमार्ग है । व्यवहारके सहारे स्वानुभवका लाभ होता है । जो एक पक्ष पकड़ लेने हैं, उनको गुरु समझा कर ठीक मार्गपर लाते हैं ।
आत्मानुशासनमें कहा है
प्राज्ञ प्राप्त समस्तशास्त्रहृदय प्रव्यक्तलोक स्थिति प्रास्ताश. प्रतिभापर. प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तर |