Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 267
________________ जोन बैद्ध तत्वज्ञान | [ २४३ (१) उत्तम क्षमा कष्ट पानेपर भी क्रोध न करके शात भाव रखना । (२) उत्तम मार्दव - अपमानित होनेपर भी मान न करके कोमल भाव रखना | (३) उत्तम आर्जव - बाधाओंसे पीडित होनेपर भी मायाचार से क्वार्थ न साघन', सरल भाव रखना । (४) उत्तम सत्य - कष्ट होने पर भी कभी धर्मविरुद्ध 'बयन नहीं कहना | (५) उत्तम शोच - ससारसे विरक्त होकर लोभसे मनको मैला न करना । (६) उत्तम सयम - पाच इन्द्रिय व मनको सबर में रखकर इंद्रिय सयम तथा पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति व त्रस काय के धारी जीवोंकी दया पालकर प्राणी संयम रखना | (७) उत्तम तप- इच्छाओं को रोककर व्यानका अभ्यास करना । (८) उत्तम त्याग - अभयदान तथा ज्ञानदान देना । (९) उत्तम आकिंचन्य - ममता त्याग कर, सिवाय मेरे शुद्ध स्वरूपके और कुछ नहीं है ऐसा भाव रखना । (१०) उत्तम ब्रह्मचर्य - बाहरी ब्रह्मचर्यको पालकर भीतर ब्रह्मचर्म पालना | बारह तप - " अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसख्यानरसपरित्यागविविक्त शय्याशन कायक्लेशा बाह्य तपः ॥ १९ ॥ प्रायश्चित्तविनयवैय्यावृत्यस्वाध्यायन्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् || २० || अ० ९ त० सूत्र ।

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