Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 265
________________ जन बौद्ध तत्वज्ञान । [२४१ (१० अपना सामान रय लका चलन , (२०) शन इन्द्रियोंको दम को माररूप रखता है (२१) प्र त मन, वचन, कायकी क्रिया करता है, (२२, एकान म्यान वादिमें ध्यान करता है, (२३) लाभ द्वेष, मानादिको भारस्य व मदेहको त्यागता है, (२४) ध्यानका अभ्यास करता है (२५) वह यानी पाचों इन्द्रियोंक मन के द्वार। विषयों को जानकर इन्में तृष्णा नहीं करता है, उनसे वैगप्रयुक्त रहनेस अगामीछा भव नहीं बनता है यही मार्ग है, जिसम मसारके दुखों का अन हाजाता है। जैन सिद्धातमें भी साधुपदकी आवश्यक्ता बताई है । वि।। गृह का आरम्भ छोड निराकुल ध्यान नहीं होमक्ता है। दिगम्बर जैनोंक शास्त्रों के अनुसार जहातक खडबन्त्र व लगोट है वहातक वह क्षुल्लक या छोटा साधु कहलाता है । जब पूर्ण नग्न होता है तब साधु कहल ता है ! शेतावर जैनों के शास्त्रोंक अनुसार नग्न सावु जिनकल्पी साधु व वस्त्र सहित साधु स्थविकल्पो म वु कहलाना है । स चुके लिए तरह प्रकारका चारित्र जरूरी है पाच महाव्रत, पाच समिति, तीन गुप्ति । पाच महाव्रत-(१) पूर्णनि अहिंसा पालना, रागद्वेष मोह छोडकर भाव अहिंसा, व त्रस-स्थावरकी स; सारुपी व आरम्भी हिमा छोड़कर द्रव्य अहिंसा पालना अहिंमा महावत है, (२) सर्व प्रकार शास्त्र विरुद्ध वचन का त्याग सत्य महावत है, (३। परकी विना दी वस्तु लेने का त्याग अचौय महावत है (४) मन वचन काय, कृत कारित अनुमतिसे मैथुना त्य ग ब्रह्मचर्य महावन है, १६

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