Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 257
________________ ANAM जौन बैंद तत्वज्ञान। 233 वह आखसे रूपको देवकर निमित (आकृति मादि) और अनुव्यजन (चिह) का ग्रहण करनेवाला नहीं होता। क्योंकि चक्षु इन्द्रियको अरक्षित रख विहरनेवालेको राग द्वेष बुगइया अकु'सक धर्म उत्पन्न होने है। इसलिये बद्द उसे सुरक्षित रखता है, चक्षुइन्द्रियकी रक्षा करता है, क्षुइन्द्रिय में सवर ग्रहण करता है। इसी तरह श्रोत्रम इब्द सुनकर, घणसे गव ग्रहण का, जिलासे रस प्रहण कर कायासे म्पर्श ग्रहण कर, मनसे धर्म ग्रहण कर निमित्तपाही नहीं होता है उन्हें सबर युक रखता है। इस प्रकार बह आर्य इन्द्रिय संवरसे युक्त हो अपने भीतर निर्मल सुखको अनुभव करता है। बह मानेजाने में जानकर करनेवाला (सपजन्य युक्त) होता है। अबलोकन विलोकन मे मटने फलान में, सघ टी पात्र चोवर के धारण कर मे, खानपान भोजन आस्वाद में, मन मुत्र विपर्जनमें, बाते खड़े होन, बैठने सोने, जागते, बोते, चुप रहने सपअन्य युक्त होता है। इस प्रकार वह आर्यस्मृति सपजन्यस मुक्त हो अपन निर्मल मुलका अनुभव करता है। वह इस आर्य शील-धस युक्त, इम अर्य इन्द्रिय सवरसे युक्त इस भर्य स्मृति मपजन्यमे युक्त हो एकान्तमे अरण्य, वृक्ष छाया, पर्वत न्दरा, गिरि गुहा, श्मशान, वन-प्रान्त, खुले मैदान या पुमालक गजमें वास करता है। बह भोजनक बाद मासन मारकर, कायाको सीधा रख स्मृतिको सन्मुख ठहरा कर बैठता है। वह शे में अभिध्या (लोभको ) छोड़ अभिध्या रहित चित्तवाला हो

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