Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 255
________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान | [ २३१ मार्ग है । मत्रज्या ( सबाय ) मैदान ( मा खुला स्थान) है । इस नितान्त सर्व परिपूर्ण, सर्वथा परिशुद्ध सरादे शब्द जैम उज्जल ब्रह्मचर्य का पालन घर में रहते हुए सुकर नहीं है। क्यों न मैं सिग, दाढ़ी मुड़ कर, काषाय वस्त्र पहन घस बेघर हो पत्र जल होन ऊ । " सो वह दूसरे समय अग्नी अल्प भोग राशिको या महाभोग गाश में, भरज्ञ तिमडलको या महा ज्ञ तिमडलको छोड़ सि' द ढो मुड़ा, काषाय वस्त्र पहन घर से बेघर हो प्रत्रजित होता है। वह इम प्रकार प्रब्रजित हो, भिक्षुओं की शिक्षा, समान जीवि काको प्रप्त हो प्राणातिपात छोड प्राणि हिंमासे विन्त होता है । दडत्यागी, शस्त्रत्यागी, लज्जलु, दय लु, सर्व प्राणियों का हितकर भौर र अनुकम्पक हो विहरता है । अदिन्नादान (चोरी) छोड़ दिना दायी ( दियेका लेनेवाला), दियेका चहनेवलाप वत्रामा हो वह ता है । अब्रह्मचर्यको छोड़ ब्रह्मवारी हो ग्राम्यधर्म मैथु से विग्त हो, भरवारी ( दूर रहने वाला ) होना है । मृषावादको छोड़ मृष वाइसे विरत हो, सत्यवादी, सत्यसंघ लोकका अबिसनदक, विश्वा सपात्र होता है । पिशुन वचन ( चुगली) छोड पिशुन वचन से विरत होता है 1 इ हे फोडनके लिय यहा सुनकर वहा कहनेवाला नहीं होता या उन्हें फोड़नेक लिये वहासे सुनवर यहा कहनेवाला नहीं होता । वह तो फूटोको मिटानेवाला, मिले हुमको न फोड़नेवाला, एकता प्रसन्न, एकतामें रत, एकता में आनंदित हो, एकता करनेवाकी वाणीका बोलनेवाला होता है, कटु वचन छोड़ कटु वचनसे विरत होता है । जो वह वाणी कर्णसुखा, प्रेमणीया, हृदयगमा,, 1 1

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