Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 250
________________ ₹१६ ] दूसरा भाग 8- समझोगे । भिक्षुत्रो ! मरे उपदेशे धर्मको कुल ( नदी पार होनेके बेड़े ) के समन पार होनेके लिये है । पकड़कर बने के थि नहीं है । हा ! पकड़ कर रखनेके लिये नहीं है। भिक्षु भो ! तुम इप परिशुद्ध छ भी आसक्त न होना । हा, भने 1 / ५- भिक्षुओ | उत्पन्न प्राणियों की स्थिति के लिये आगे उत्पन्न होनेव के सर्वोक लिये ये चार आहार है - ( १ ) स्थूळ या सूक्ष्म धवलीकार (कान लेना ), (२) स्पश- महार, (३) मन सचेतना आहार रमन से विषय का खयाल करक तृप्ति काम करना, (४) विज्ञान (चेतना) इन चारों आहारों का निदान या हेतु या समुद्रय तृष्णा है। ६ - भिक्षु यो । इम तृणा का निदान या हेतु वेदना है, वेदनाका हेतु स्पर्श है, स्पर्शका हेतु षड़ आयतन ( पाच इन्द्रियमन ) बड़ आयतनका हेतु नामरूप है, नामरूपका हेतु विज्ञान है, विज्ञा नका हेतु मस्कार है सस्कारका हेतु अविद्या है । इस तरह मूलवासे लेकर तृष्णा होती है। तृ ण के कारण उपादान (ग्रहण करने की इच्छा ) होता है, उपादान के कारण भव ( ससार ) । अवके कारण जन्म, जमके कारण जरा, मरण, शोक क्रंदन, दुःख, दौर्मनस्य होता है । इम प्रकार केवळ दुख स्वकी उत्पत्ति होती है । इम तरह मूल अविद्या के कारणको लेकर दुख स्वकी उत्पत्ति होती है । ७- भिक्षुमो ! अविद्या के पूर्णतया विरक्त होने से, नष्ट होने से, सरकार का नाश (निरोर) होता है । सकारके निरोवसे विज्ञानका

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