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दूसरा भाग ।
थाके लिये है। यह प्रज्ञानिरोधक, विघात पक्षिक (हानिके पक्षका), निर्वाण को नहीं ले जानेवाला है। यह सोचते वह काम वितर्क अस्त हो जाता था। इसतरह वार वार उत्पन्न होनेवाले काम वितर्कको मै छोड़ता ही था, हटाता ही था, अलग करता ही था। इसी प्रकार व्यापाद वितर्कको तथा विडिसा वितर्कको जब उत्पन्न होता था तब मै मलग करता ही था।
भिक्षुओ ! भिक्षु जैसे जैसे अधिकतर वितर्क करता है, विचार करता है वैसे वैसे ही चित्तको झुकना होता है। यदि भिक्षुओ ! भिक्षु काम विनर्कको या व्यापादवितर्कको या विलिसा विनर्कको अधिकतर करता है तो वह निष्काम विनर्कको या भव्यापाद वित कको या अविहिंसा वितर्कको छोडता है और कामादि वितर्कको बढाता है। उसका चित्त वामादि विन की ओन या जाता है ।
जैसे भिक्षुओ ! वर्षाके अतिम मासमे (शाद काल्मे ) जब फसल भरो रहती है तब ग्वाला अपनी गायों की रखवाली करता है। वह उन गावोंसे वहा ( भरे हुए खेतों) से डम हाकता है, मारता है रोकता है, निवारता है। सो किस हेतु ! वह ग्वाला उन खेतोंमें चरने के कारण वध, बन्धन, हानि या निन्दाको देखता है। ऐसे ही भिक्षुओ! मै अकुशल धर्मोके दुष्परिणाम, भपकार, सक्लेशको
और कुशल धर्मो में अर्थात निष्कामता आदिमें सुपरिणाम मौर परिशुद्धताको संरक्षण देखता था ।।
मित्रो ! सो इस प्रकार प्रमादरहित विहरते यदि निष्कामती वितर्क, भव्यापाद वितर्क या अविहिंसा वितर्क उत्पन होता था,