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जैन बौद्ध तत्वज्ञान |
माके होते है । सात व मानसे आगे सर्व गुणस्था हैं। जेरु निवाण मार्गानुभव वैसे निर्माणमा स्वानुभव निर्विव्य है । कार्य
कवानुमल स्वय छूट जाता है।
कि रूप, वेदना, संज्ञा, सस्कार.
फिर इसमें बता विज्ञानको व जो कुछ देखा सुन, अनुभाव मनसे विचार किया
छोडो। उसमें मेगपना न करो । यह सवन मेरा है न यह
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विज्ञानका प्रकार है ।
ध्यान व
निर्विरुरूप है पेपर नीचे
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मेरा आत्मा है ऐसा अनुभव करो । यह वास्तव में भेद
जैन सिद्धात अनुसार मतिज्ञान व श्रुतज्ञान पाच इन्द्रिय व मनस होनेवाला पराधोन ज्ञान हैं, वह आप निर्वाणस्त्ररूप नहीं है । निर्वाण निर्विकल्प है, स्वानुभवगम्य है, वही मैं हू या आत्मा है इस भाव से विरुद्ध सर्व ही इन्द्रिय व मनद्वारा दानवाले विकल्प त्यागने योग्य है। यही यहा भाव है। इन्द्रियों द्वारा रूपका ग्रहण करता है । पाच इन्द्रियो सर्व विषय रूप हैं, फिर उनके द्वारा सुख दुख वेदना होती है, फिर उन्हींकी सज्ञारूप वृद्धि रहती है, उसीका वारवार चित्तपर असर पड़ना सस्कार है, फिर वही एक धारणारूप ज्ञान होजाता है, इसीको विज्ञान कहते हैं । वास्तव में ये पाच ही त्यागनेयोग्य हैं । इसी तरह मनवेद्वार । होनेवाला सर्व विकल्प त्यागनेयोग्य है । जैन सिद्धान्तमें बताया है कि यह आप आत्मा अतीन्द्रिय है, मन व इन्द्रियोंसे अगोचर है । आपसे आप ही अनुभवगम्य है | श्रुतज्ञानका फल जो भावरूप स्वसंवेदनरूप आत्मज्ञान
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