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जैन का सामान । ६३५३ (४) और जैसे एक मर्दित, मृदु, खर्खराहट रहित विलीके चमड़ेकी खाल हो, तब कोई पुरुष काठ या ठीकरा लेकर आए
और बोले कि मैं इस काठसे बिल्लोकी खालको खुर्दुरी बनाऊगा तो क्या वह कर सकेगा। नहीं, क्योंकि बिल्लीकी खाल मर्दित है, मृद है, वह काठसे या ठीकरेसे खुर्दुरी नहीं की जासक्ती। इसी तरह पाचों वचनपथके होनेपर तुम्हें सीखना चाहिये कि मैं सर्वलोकको बिल्लीकी खालके समान चित्तसे वैरभावरहित भावसे भरकर बिहरूगा।
(५) भिक्षुओं ! चोर लुटेरे चाहे दोनों ओर मुठिया लगे, आरेसे अग अगको चीरे तौभी जो भिक्षु मनको द्वेषयुक्त करे तो वह मेरा शासनकर (उपदेशानुसार चलनेवाला) नहीं है । वहापर भी भिक्षुओं ! ऐसा सीखना चाहिये कि मैं अपने चित्तको विकाग्युक्त न होने दूंगा न दुर्वचन निकालगा। मैत्रीमावसे हितानुकम्पी होकर विहरुगा, न द्वेषपूर्ण चित्तसे । उस विरोधीको भी मैत्रीपूर्ण चित्तसे भाप्लापित कर विहरूगा। उसको लक्ष्य करके सारे लोकको विपुल, विशाल, मप्रभाण, मैत्रीपूर्ण चित्तसे भरकर अवरता व भव्यापादितासे भरकर विहरूगा।
भिक्षुओं ! इस क्रकचोयम (आरेके दृष्टातवाले ) उपदेशको निस्तर मनमें करो। यह तुम्हें चिरकालतक हित, मुखके लिये होगा।
नोट-इस सूत्रमें नीचे प्रकार सुन्दर शिक्षाए है
(१) भिक्षुको दिन रातम केवल दिनम एकवार भोजन करना चाहिये, यही शिक्षा गौतमबुद्धने दी थी व भाप भी एकासन करते थे। योगीको, त्यागीको, ध्यानके मभ्यासीको दिनमें एक ही