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दसरा माग।
किसी शिल्पसे शीत उष्ण पीडित, डंस, मच्छर, धूप हवा आदिसे उत्पीड़ित, भूख प्याससे मरता आजीविका करता है। इमी जन्ममें कामके हेतु यह लोक दु खोंका पुज है । उस कुल पुत्रको यदि इस प्रकार उद्योग करते, मेहनत करते वे भोग उत्पन्न नहीं होते (जिनको वह चाहता है) तो वह शोक करता है दुखी होता है, चिलाता है, छाती पीटकर रुदन करता है, मूर्छित होता है । हाय । मेरा प्रयत्न व्यर्थ हुमा, मेरी मिहनत निष्फल हुई, यह भी कायका दुष्परिणाम है । यदि उस कुलपुत्रको इसप्रकार उद्योग करते हुए भोग उत्पन्न होते हैं तो वह उन भोगोंकी रक्षाके लिये दु ख दौर्मनस्य झेलता है। कहीं मेरे भोग राजा न हरले, चोर न हर लेजावे, आग न दाहे, पानी न बहा लेजावे, अप्रिय दायार न हर लेजावे । इस प्रकार रक्षा करते हुए यदि उन मोगोंको राजा भादि हर लेते हैं या किसी तरह नाश होजाता है तो वह शोक करता है। जो भी मेरा था वह भी मेरा नहीं रहा। यह भी कामोका दुष्परिणाम है। कामोंके हेतु राजा भी राजाओंसे लड़ते हैं, क्षत्रिय, ब्राह्मण, गृहपति वैश्य भी परस्पर झगड़ने हैं, माता पुत्र, पिता पुत्र, माई भाई, भाई बहिन, मित्र मित्र, परस्पर झगड़ते है । कलह विवाद करते, एक दुसरेपर हाथोंसे भी आक्रमण करते, डडोंसे व शस्त्रोंसे भी भाक्रमण करते हैं। कोई वहा मृत्युको प्राप्त होते हैं, मृत्यु समान दुखको सहते हैं। यह भी कामोका दुष्परिणाम है।
कामोंके हेतु ढाल तलवार लेकर, तीर धनुष चढ़ाकर, दोनों तरफ व्यूह रचकर संग्राम करते हैं, मनेक मरण करते हैं। यह भी कामोंका दुष्परिणाम है।