Book Title: Jain Acharyo ka Shasan Bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ अष्ट मूलगुण नामके सदृश, क्यों सूचित नहीं किया गया । परंतु इसे छोड़िये, ऊपरकें इस पद्यद्वारा जिन मूलगुणोंका उल्लेख किया गया है उनमेंसे शुरूके पाँच मूलगुण तो वही हैं जो ऊपर 'अमितगति' आचार्यके कथनमें दिखलाये गये हैं । हाँ, उनमें इतनी बात नोट किये जानेकी जरूर है कि यहाँपर पंच उदुम्बरफोंके समुदायको स्पष्टरूपसे 'पंचफली' शब्द-द्वारा एक मूलगुण माना गया है और इसलिये इससे मेरे उस कथनकी कि इन पाँचों उदुम्बरफलोंमें परस्पर ऐसा कोई विशेष भेद नहीं है कि जिससे इनके त्यागको अलग अलग मूलगुण करार दिया जाय, बहुत कुछ पुष्टि होती है। बाकी रहे तीन गुण आप्तनुति, जीवदया और जलगालन, ये तीनों यहाँ विशेष रूपसे वर्णन किये गये हैं। इनमें आप्तनुतिसे अभिप्राय परमात्माकी स्तुति अधवा देववंदनाका है। परंतु 'जीवदया' शब्दसे कौनसा क्रियाविशेप अभिमत है यह कुछ समझमें नहीं आया; वैसे तो मूलगुणोंका यह सारा ही कथन प्रायः जीवदयाकी प्रधानताको लिये हुए है, फिर * जीवदया' नामका अलग मूलगुण रखनेसे कौनसे आचरणविशेषका ग्रहण किया जाय, यह वात अभी जानने योग्य है । संभव है कि इससे अहिंसाणुव्रतका, अभिप्राय हो । परंतु कुछ भी हो, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि यह मत दूसरे आचार्योंके मतोंसे विभिन्न है । पं० आशाधरजीने भी, इस मतका उल्लेख करते हुए, एक प्रतिज्ञावाक्य-द्वारा इसे दूसरे आचार्योंके मतोंसे विभिन्न बतलाया है। वह वाक्य इस प्रकार हैं " अथ प्रतिपाद्यानुरोधाद्धर्माचार्याणां सूत्राविरोधेन देशनानानात्वोपलंभाग्यन्तरेणाष्टमूलगुणानुद्देष्टुमाह ।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87