Book Title: Jain Acharyo ka Shasan Bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 73
________________ परिशिष्ट . है*। इसलिये छेदोपस्थापनाकी 'पंचमहावत' संज्ञा भी है, और इसी लिये आचार्यमहोदयने गाथा नं० ३३में छेदोपस्थापनाका 'पंचमहावत' शब्दोंसे निर्देश किया है । अस्तु । इसी प्रन्थमें, आगे 'प्रतिक्रमण' का चर्णन करते हुए, श्रीवट्टकेरस्वामीने यह भी लिखा है: सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स जिणस्स । अवराहपडिक्कमण मज्झिमयाणं जिणवराणं ॥७-१२५ ॥ * 'तत्त्वार्थराजवार्तिक में भट्टाकलंकदेवने भी छेदोपस्थापनाका ऐसा ही स्वरूप प्रतिपादन किया है। यथाः "सावधं कर्म हिंसादिभेदेन विकल्पनिवृत्तिः छेदोपस्थापना।" इसी ग्रंथमें अकलंकदेवने यह भी लिखा है कि सामायिककी अपेक्षा व्रत एक है और छेदोपस्थापनाकी अपेक्षा उसके पाँच भेद हैं । यथाः "सर्वसावधनिवृत्तिलक्षणसामायिकापेक्षया एकं व्रतं, भेदपरतंत्रच्छेदोपस्थापनापेक्षया पंचविधं व्रतम् ।" __ श्रीपूज्यपादाचार्यने भी 'सर्वार्थसिद्धि' में ऐसा ही कहा है। इसके सिवाय, श्रीवीरनन्दी आचार्यने, 'आचारसार' ग्रंथके पाँचवें अधिकार में, छेदोपस्थापनाका जो निम्न स्वरूप वर्णन किया है उससे इस विषयका और भी स्पष्टीकरण हो जाता है । यथाः बतसमितिगुप्तिगैः पंच पंच त्रिभिर्मतैः। छेदैर्भेदैरुपेत्यार्थ स्थापनं स्वस्थितिक्रिया ॥६॥ छेदोपस्थापनं प्रोक्तं सर्वसावद्यवर्जने । व्रतं हिंसाऽनृतस्तेयाऽब्रह्मसंगेष्वसंगमः ॥७॥ अर्थात-पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति नामके छदों-भोंके द्वारा अर्थको प्राप्त होकर जो अपने आत्मामें स्थिर होने रूप क्रिया है उसको छेदोपस्थापना या छेदोपस्थापन कहते हैं । समस्त सावद्यके त्यागमें छेदोपस्थापनाको हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन (अब्रह्म) और परिप्रहसे विरति रूप व्रत कहा है।

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