Book Title: Jain Acharyo ka Shasan Bhed
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 78
________________ ७२ www mmanmmmmmmmmm जैनाचार्योंका शासनभेद तिस्रः सत्तमगुप्तयस्तनुमनोभापानिमित्तोदया: पंचेर्यादिसमाश्रयाः समितयः पंचत्रतानीत्यपि । चारित्रोपहितं त्रयोदशतयं पूर्व न दिष्टं परै राचारं परमेष्ठिनो जिनपतेवीरानमामो वयम् ॥ ७॥ इसमें कायादि तीन गुप्ति, ईर्यादि पंच समिति और अहिंसादि पंच महाव्रतरूपसे त्रयोदश प्रकारके चारित्रको 'चारित्राचार' प्रतिपादन करते हुए उसे नमस्कार किया है और साथही यह बतलाया है कि 'यह तेरह प्रकारका चारित्र महावीर जिनेन्द्रसे पहलेके दूसरे तीर्थकरोंद्वारा उपदिष्ट नहीं हुआ है'-अर्थात् , इस चारित्रका उपदेश महावीर भगवान्ने दिया है, और इसलिये यह उन्हींका खास शासन है। यहाँ 'वीरात पूर्व न दिष्टं परैः' शब्दों परसे, यद्यपि, यह स्पष्ट पनि निकलती है कि महावार भगवान्से पहलेके किसी भी तीर्थकरने-- ऋषभदेवने भी इस तेरह प्रकारके चारित्रका उपदेश नहीं दिया है, परन्तु टीकाकार प्रभाचन्द्राचार्यने 'परैः' पदके वाच्यको भगवान् 'अजित' तक ही सीमित किया है-ऋपभदेव तक नहीं । अर्थात्, यह सुझाया है कि पार्श्वनाथसे लेकर अजितनाथपर्यंत पहलेके वाईस तीर्थंकरोंने इस तेरह प्रकारके चारित्रका उपदेश नहीं दिया है-उनके उपदेशका विषय एक प्रकारका चारित्र (सामायिक) ही रहा है-यह तेरह प्रकारका चारित्र श्रीवर्धमान महावीर और आदिनाथ (ऋषभदेव)के द्वारा उपदेशित हुआ है। जैसा कि आपकी टीकाके निम्न अंशसे प्रकट है:___..........परैः अन्यतीर्थकरैः । कस्मात्परैः ? वीरादन्यतीर्थकरात् । किंविशिष्टात् ? जिनपतेः...... । परैरजितादिभिर्जिननाथैत्रयोदशभेदमिन्नं चारित्रं न कथितं सर्वसावद्यविरतिलक्षणमेकं चारित्रं तैर्विनिर्दिष्टं तत्कालीनशिष्याणां ऋजुचक्रजडमतित्वाभावात् । वर्धमानस्वामिना तु वक्रजडमतिभन्याशयवशात् आदिदेवेन तु ऋजुजडमतिविनेयवशात् त्रयोदशविधं निर्दिष्टं आचारं नमामो वयम् ।"

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