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१० : जैन आचार के विषय मे विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। वैदिक विधिविधानों के साथ ही साथ सामाजिक गुणों एवं आध्यात्मिक विशुद्धियों का भी विचार किया गया है । संक्षेप मे कहा जाय तो इनमे भौतिक सुखों एवं आत्मिक गुणो का समन्वय करने का प्रयत्न किया गया है। सूत्रो व धर्मशास्त्रों में मानव-जीवन के चार सोपान-चार आश्रम निर्धारित किये गये हैं जिनके अनुसार आचरण करने पर मनुष्य का जीवन सफल माना जाता है। इन चार आश्रमों के पारिभाषिक नाम ये हैं : ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम व संन्यासाश्रम । ब्रह्मचर्याश्रम मे शारीरिक व मानसिक अनुशासन का अभ्यास किया जाता है जो सारे जीवन की भूमिका का काम करता है। गृहस्थाश्रम सांसारिक सुखों के अनुभव व कर्तव्यों के पालन के लिए है। वानप्रस्थाश्रम सांसारिक प्रपंचों के आंशिक त्याग का प्रतीक है । आध्यात्मिक सुखो की प्राप्ति के लिए सासारिक सुख-सुविधाओ के हेतु किये जानेवाले प्रपंचों का सर्वथा त्याग करना संन्यासाश्रम है। इन चार आश्रमों के साथ ही साथ चार प्रकार के वर्णों के कर्तव्याकर्तव्यों के लिए आचारसंहिता भी बनाई गई। आचार के दो विभाग किये गये : सब वर्गों के लिए सामान्य आचार और प्रत्येक वर्ण के लिए विशेष आचार । जिस प्रकार प्रत्येक आश्रम के लिए विभिन्न कर्तव्यों का निर्धारण किया गया उसी प्रकार प्रत्येक वर्ण के लिए विभिन्न कर्तव्य निश्चित किये गये, जैसे ब्राह्मण के लिए अध्ययन-अध्यापन, क्षत्रिय के लिए रक्षण-प्रशासन, वैश्य के लिए व्यापार-व्यवसाय एव शूद्र