Book Title: Jain Achar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Vidyapith
View full book text
________________
अनुक्रमणिका : २२७
६४
६५
कोगिका
२००,२०१ कुलाचार्य
२०१ गंगा कुशील
६९ गच्छ ६५, ६६, २०० कूटतोल-कूटमान ६६ गच्छाचार्य
२०० कूट-लेखकरण
९४ गच्छाधिपति केश १९० गजसुकुमार
७४ केगवाणिज्य १०९ गण
२००, २०१ ६४ गणघर
२०१ कोत्कुच्य ११२ गणाचार्य
२०१ क्रीत १७२ गणावच्छेदक
२००, २०२, क्रोध १७३
२०४, २०५ क्लोव
गणावच्छेदिनी
२०७ क्षत्रिय
गणिनी
२०७ सपण
गणिसंपदा क्षमायाचना
गणो
२०२, २०५ क्षितिशयन ७१,१४२ गवेपणा
१७२, १७३ क्षीण कपाय ३७ गोत
६८ घोण-मोह
३७ गुणगत
७५, ७७, ८५ क्षुल्लग १३०
१०४, ११३ शुल्लिकाचार-गाया
गुणस्थान २६, ३०, ३८,७२ १०३
गुणो संगमानु-परिमाण-अतिक्रमण १०४
गुदा विद्धि
१०५ गुप्ति
११. गुरुचातुर्मालिक ६६, २१२.२१४
१०
५६
६,२६२,१३

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257