Book Title: Jain Achar
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 240
________________ २२६ ; जैन आचार एपण ७१ ११,१५ D ऐरावती ऐलक १३,१४ १३० कर्म कर्मकाडी कर्मपथ कर्मबंध कर्ममुक्ति कर्मवाद कर्मादान ओघदृष्टि ओदन ११,१६ १४ १०८ १०७ कल्प ६३ ६४,१५८ १७२ औदारिक औद्देशिक औणिक औपध औष्ट्रिक कल्पसूत्र कल्पस्थिति कषाय कषायविजय . काजी व ८ ६ mr १८६ al काता . x V कंद कंदर्प कवल फुड FREE कुटकोलिक कच ७५ कातादष्टि ११२ कामदेव १६५ कामभोग-तीव्राभिलाषा ९९ ७८ कामभोगाशंसाप्रयोग कायदुष्प्रणिधान ७८ कायोत्सर्ग ६१,७२,१४३,१४७, १८६,२११ १६२ ७१ कार्मण कालातिक्रमण ७४ १६४ कुप्य २१ कुप्य-परिमाण-अनिक्रमण १०४ कारण १६ ११९ ऋचित् करणानुयोग फरपाय काष्ठ १७६

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