Book Title: Indian Antiquary Vol 40
Author(s): Richard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar
Publisher: Swati Publications

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Page 196
________________ 182 THE INDIAN ANTIQUARY [JULY, 1911. In this connection is worth quoting what is called a Palliodla-Chhand, for which also I am indebted to Nannuram Brabmabbat. He found it in the manuscripts of the Dadli of a Pallival family in Kui in Shergadh, Jodhpur State. It is as follows: ॥नीसांणी छंद ॥ पाली गढ बांध्यौ प्रगट आछी छिब आंणी, सहर कोट दश कोसमें बाजार वसांणी ॥ सवालाख घर सांवठा जग सारां जाणी, विप्र निधन जो मा वस्था संपत समपाणी ॥१॥ इक कट जुअरपनै धर धाम बंधांणी, वडो सरोवर वीझणी पीवै नित पाणी ॥ नीर नासकां नीसरे मुखिया करसाणी, राज करै विसहट ऋषी रूपावत रांणी ॥२॥ सीही कमध प्रधान सो आयें अगवाणी, बारासौ बाराणवै माया हद माणी ।। वीता वरष छवीस यूं सब सुख सरसांणी, पत दिल्ली सर पातसा असी मन आणी ॥३॥ नामुरदीन निषेदन फौजां फरमाणी. मुगल पठाण मलेछ मिल उलटी मन आणी ॥ सेख रु सैयद जवनसो तब मूछां तांणी, जाखां नसकर लँगर ले जुध लडवा जाणी ॥४॥ आय रुपाली उतरिया दल कोट दिवाणी, दोला फिर डेरा दिया जद ऋसियां जाणी॥ . जबर करायी जावती विस हा रकबांणी, मडिया सांमा मोरचा दिन रात दिखाँणी ॥ ५॥ सोप अरावां स्यार धड़ धड़ है धांणी, धुंबै अम्बर ढकिया रणसींग रुड़ाणी।।। वित न हार बार वरस जुध जीता जाणी, गैरूं हिडमच गालिया पलटण रंग पांणी।।६।। खट दरवाजा खोलिया विखया ब्रह्मांणी, असुरां भेव जु आणियौ जीतां जब जांणी ।। विमां वात राखी बडी होती भ्रमहांणी, पालीवाल इतरा पड़या गिणती न गिणी॥७॥ सोल जनेऊ ताकड़ी अठ ऊपर आंणी, च्यार हजार दलवा खग ने खूटाणी ॥ गोयल रण मांडणे गजब अजड़ा लूटांणी, पांच सहस राठड़ पड़े सीही सेतरांणी ॥ ८॥ कजियो कीची कमधजां तरवारा तांणी, पड़िया रण पडिहार जो वंका विरवाणी ।। डाभी भइ रहिया अडिग इल पर अनांशी, राखी वात चांण रंग.सूरां सैनाणी ॥ छिनमैं कदिया छ हजार घायल हा घांणी, पाला सात हजारवी बुंदी जशवांगी ।। आठ हजार पमार अड़ ठावै मन डांणी, धारधणी मानवधरा बोल्या हद वाणी ॥ १० ॥ बाबा कटिया नौ हजार नागा निरवांगी, खागां लड़िया खेतमें मरदां हद मांणी । बटका होवे बकतरां कंध सीस कटांणी, टूक दूक झिलम टोप विजड़े तिरछांणी ।। ११ ।। वहै झटक्का अंग विछट हिंदू तुरकांणी, वर वर लेवे अपछरा वैकुंठ वसांणी।।। जध सुण आई जोगण्यां रुद्र पीय रिझांणी, एक पहर ठहर अवस जुध सुरज जांणी || १२ ।। गट सीरोही गांमरा मोटा मरवाणी, गहरवार लाड़वा गजब गढ गागरूण गिणी ।। ऊभाला जालोरगढ जस मुरधर जांणी, पानी लड़ता राखियो पलीवाला पाणी ।। १३ ।। ॥दोहा॥ । तरैसौ सीसै संमत | घणो हुवी घमसाण ॥ पानी छोड पधारिया | पलीवाल पिछमाण ॥१॥ The purport of this Chhand is as follows: Ten kos from the town wall of Pali was its' bazar. The place contained one lakh and a quarter houses of the Pallival Brâhmaņas. When a new and poor Brabmaņa came from outside, he was given by each family one brick to build a house with. The town was supplied with water from a spacious lake called Bijbano, which also was used for irrigation purposes. The king was one rish, Visahat and his queen was Rupavat. Siba, a Kamadh, i.e., R&thod, became his minister in V. S. 1292. For twenty-six years they enjoyed all sort of happiness. Then Nasuradin, emperor of Delhi, brought a large force to capture Pali. For twelve years the Brahmaņas fought with the Muham

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