Book Title: Ikshukaradhyayan
Author(s): Pyarchandji Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashak Samiti

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन। प्रिय महोदय ! आज वह विषय आपके सामने रख रहा हूँ। जिसका जैनमात्र को अध्ययन एवम् बोध करना आवश्यकीय है। यह विषय श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्र का १४ वाँ अध्याय है । जिस का मूल अर्ध मागधी भाषा में श्रीभगवान महावीर स्वामीने फरमाया । उस में यह प्रकाश डाला गया है कि, इक्षुकार राजा और कमलावती गनी एवम् भृगु पुरोहित और उसकी पतिव्रता पत्नी और दोनों युग्म कुंमारों ने किस प्रकार मुक्ति प्राप्त की। उन्हीं मूल श्लोकों पर शास्त्रविशारद श्रीनलैनाचार्य पूज्यवर श्री १००८ श्री मन्नालालजी महाराज की संप्रदाय के जगत् वल्लभ प्रसिद्धवक्ता-पण्डित मुनि श्री १००८ श्रीचौथमल्लजी महाराज के शिष्य साहित्य प्रेमी पण्डित मुनि श्रीप्यारचन्दजी महाराज ने संस्कृत छाया, अन्वयार्थ और सरल भावार्थ किया है। अतः इस अध्ययन को पाठक पाठिकाओं के लाभार्थ इस संस्था की ओर से प्रकाशित कर मात्र लागत मूल्य में दिया जाता हैं। इस में कही अफ संशोधक की असावधानी से अशुद्धि रह For Private And Personal Use Only

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