Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

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Page 10
________________ ( २ ) और कई एक मतावलंबी अनजान लोक ऐसे कहते हैं कि जैनी लोक नास्तक मती हैं अर्थात् ईश्वर को नहीं मानते हैं । सो उन को इस ग्रंथ के द्वितीय भाग के परमात्म अंग आदि अंगों के बांचने से ऐसा भाव मालूम हो जायगा कि जैनी लोक इस रीति से तो ईश्वर सिद्ध स्वरूप परमात्म पद को मानते हैं । और इस रीति से ईश्वर अर्थात ठकुराई धारक धर्म दाता अरिहंत देव को मानते हैं और इस रीति से जैनी ईश्वर अर्थात् ठाकुर न्याय (इन्साफ़) हुकम राज काज के कारक रजोगुणी तमोगुणी सतोगुणी राजा वासुदेव को मानते हैं और इस रीति से चैतन्य को कर्मों का कर्ता और भोक्ता मानते हैं और इस राति से जैन

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