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वालकों कैसे उपहास योग्य टूमन दामन बहुत से पाखण्ड लिखे हैं जैसे कि ४५० वें पत्र पर लिखा है कि “ अपनी स्त्री को वार२ सराग नेत्रों से देखे और रूठ गई हो तो मना लेवे" इत्यादि और पत्र३९९पर लिखा है कि दातन रोज रोज करे फिर दातन करके सामने ही फैके परन्तु आस पास को न फेंके, और जो दांतन न मिले तो १२वारह कुरले ही कर लेवे । (सो) भला बुद्धिमानों को विचारना चाहिये कि इन रेड़कों से क्या सिद्धि होती है और क्या ज्ञानदर्शन चरित्र की आराधना होती है और क्या जिन आज्ञा, अनाज्ञा की आराधना होती है ।। तक जेकर कहोगे हमने तो उपदेश नहीं | किया यह तो व्यवहार ही है तो फिर हम
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