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जी यह कथन सुन कर ताही दिन से मोंन पोसा करते भये विचारने लगे और ता दिन से एकादशी व्रत प्रसिद्ध हुआ। खण्डन उत्तर पक्षी की तरफ से । यह ग्रंथकार का कथन झूठ है क्योंकि सूत्र में तो भव आश्री नियाना करने वाला अवृत्ति कहा है अगर नहीं तो सूत्र का पाठ दिखाओ कि कृष्णजी ने कोई पचक्खान धर्म निमित्त किया हो, अक योंहीं अन हुए मतग्राहियों के गोले गरड़ाये हुए सूत्र शाख बिना ही लिख धरते हो सो कृष्णजी को धर्म निमित्त अर्थात् महापर्व एकादशी पोसा करना लिखा है यह झूठ २० । पत्र २५०वें पर लिखा है कि १० प्रकार मिश्र० वचन उत्तर पक्षी की तर्फ से सो, उनमें से दो वचन का अर्थ सूत्र प्रज्ञापन्न थकी विरुद्ध
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