Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

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Page 339
________________ ( ३०७ ) - - - ११ विवाग, इति ११ अंगनाम ॥ और १२ वारहवां जो दृष्टिवाद अंग है तिस के सूत्र असंख्यात हैं सो इस काल में विछेद होचुका है परन्तु जो दृष्टि वाद में से अव आरे और बुद्धि प्रमाण उववाई आदिक २१ इक्कीस सूत्र जिनकी आदि मध्य अंत का स्वरूप ११ अंग से मिलता है सो उन को हम मानते हैं क्योंकि नन्दी सूत्र में कहा है, कि दश पूर्व अभिन्ह वाहि समसूत्री इत्यादि । तस्मात् कारणात् जिन ग्रंथों में १ . ने पाठी कर्ता का नाम और साल का नाम हो सो सम्पूर्ण सम सूत्र नहीं माना जाता है। और फिर ऐसे भी है कि जैसे उत्तराध्ययन सूत्राध्ययन ३ तीसरे गाथा ८ आठवीं, माणुस्सं विग्गहं लहूं, सुईधम्मस्स . - -

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