Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

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Page 346
________________ ( ३१४ ) क्योंकि तुम भी तो अकल के रूह देखो से कि जो महाबीर स्वामी का भक्त था तो ऐसे पूर्वक कर्तव्य कैसे संभव है और जो ऐसे निकम्मे कर्म करने वाला था तो महाबीर स्वामी का भक्त कैसे कहा इत्यादि तस्मात् | कारणात् जो ग्रन्थों में सूत्रों से अमिलित कथन हैं वह बुद्धिमान पुरुषों को निर्णय करे बिना कदाचित प्रमाण करने नहीं चाहिये और जो सनातन सूत्रानुसार किसी भी ग्रंथ में कथन होय सो तहत प्रमाण करो। इति द्वितीयो भागः समाप्तः । पञ्चम्यां गुरुवासरे सितदले कन्यारवौवैक्रमे, वेदाध्यङ्क विधौ विधौतमनसां ज्ञानस्यसंदीपिका । सत्यासत्य विवेकेताविर -

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