Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

View full book text
Previous | Next

Page 341
________________ ( ३०९ ) टीका आदिक और मतों के शास्त्र हैं उन में भी जो तप क्षमा दया का वर्णन है सो सर्व प्रमाण है और उस कथन को शास्त्र ही मानते हैं अपितु शास्त्र का सार यही है । यथा श्लोक, 'अष्टादश पुराणानि, व्यासस्य वचनं दय, परोपकारेण पुण्यञ्च, पापश्च परपीडनम् ॥ १॥ अस्यार्थः सुगम : सो हे बुद्धिमानो ! विचार के देखो कि इस में पक्षपात की कौनसी बात है परन्तु हम लोग ऐसे नहीं मानते हैं कि जैसे कई एक मतान्तरी ऐसे कहते हैं कि ईश्वर निरञ्जन निराकार ज्योतिः स्वरूप है और फिर कहते हैं कि वही सृष्टि को रचता है और वही खो देता है और वही सुख दुःख प्राणियों को देता है । उत्तरम् सो नहीं, क्योंकि ? - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353