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और वह दूसरा पुरुष धर्मशाला में से धर्मोंपदेश सुनकर बाजार में आया, और दोनों आपस में पूछने लगे कि कुछ धर्म पाया ? धर्मशाला वाला बोला कि हां पाया, श्री ठाकुर जी बड़े न्यायी हुए हैं और दया दान करना, धर्म है। भला तुमने क्या पाया ? तो वह ठाकुरद्वारे वाला बोला कि मैने तो कुछ नहीं पाया, हां अलबत्ता एक बड़ा सुन्दर गुड्डियों का जोड़ा देख आया हूं चलतूं भी मेरेसाथ चल कर देख ले तब वह बोला कि में देख के क्या करूंगा, जो कुछ पाना था सो मैं गुरु कृपा से पाआया हूं अब मूर्ति से क्या पाऊंगा जो कुछ तुमने पाया ? इत्य
र्थः और इसी अर्थ में दूसरा दृष्टान्त लिखते - हैं कि एकनगर में एक बड़ा नामी हकीम था
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