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उत्तर देंगे कि जो उपदेश नहीं था तो फिर तुमने व्यवहार रूप मगज पच्ची और पत्र लिखने में निरर्थक परिश्रम (मिहनत ) क्यों किया सो हे भाई ! ये बातें किसी बुद्धिमान त्यागी पुरुष के हृदय में तो बैठने की नहीं
और मृदों के तथा स्वपक्षियों के हृदय में तो दांत घसनी करके बैठाही देते होगे यह स्थूल (मोटा) परस्पर विरोध है ॥ ११ ॥ । पत्र १८७ वें पर लिखा है कि " हिंसा में धर्म नहीं कहना चाहिये बंध्या पुत्र वत्
और हिंसा कारण धर्म कार्य है" यह कथन को भी लिङ्गिये ने असत्य लिखा है, फिर देखो मत पक्ष करके हिंसा में धर्म प्रत्यक्ष कहते हैं तर्क० जेकर कहोगे कि वह तो मिथ्याती | मृगादिक बड़े २ जीवों के मारने में अर्थात्