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कि जैनतत्वादश ग्रन्थ में जो २ कथन है। सो सर्व ही न्याय है तथा अन्याय है सो तिस भ्रमरूप अन्धकार के नाश करने के लिये यह ज्ञानदीपिका ग्रन्थ, दीपिकावत रचा गया है क्योंकि इस ज्ञानदीपिका के बांचने
और सुनने से जैनतत्वादर्श ग्रन्थ में जो २ पूर्वा पर शास्त्रों से अमिलित अर्थात् विरुद्ध है तथा परस्पर विरुद्ध जो तिसी ग्रन्थ में बावले की लंगोटी की तरह आदि में कुछ
और अंत में कुछ जैसे कि जिस कार्य को प्रथम, निषेधा है फिर तिसी कार्य को तादृश ही कथन में अंगीकार किया है तथा जो बिलकुल ही झूठ है तथा जो शास्त्रानुसार कथन लिखे हैं सो महा उत्तम और सत्य हैं, इत्यादि स्वरूप इस ज्ञानदीपिका ग्रन्थ के बां
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