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कि हम ग्रन्थ संज्ञा श्लोक को कहते हैं तो ऐसे भी तुम्हारा लिखा हुआ तुम को शरण नहीं लेने देता क्योंकि ५९५ वें पत्र पर लिखा है कि यशो विजय गणिने १०० सौ ग्रन्थ रचे है तो फिर वे भी श्लोक ही हुए तो ऐसे पण्डितों की १०० श्लोकों के वास्ते क्या बड़ाई लिखने लगे थे और ऐसे तो हो ही नहीं सक्ता कि कहीं तो ग्रन्थ को ग्रन्थ और कहीं श्लोक को ग्रन्थ कहा क्योंकि सूत्रोंके विषे श्लोक का नाम कहीं ग्रन्थ नहीं लिखा जहां कहीं श्लोकों की संख्या करी जाती है तो वहां ऐसे लिखा जाता है कि " ग्रन्था ग्रन्थ ५०० तथा७०० इत्यादि” क्योंकि ग्रन्थ नाम बहुतों के मिलने से होता है और आत्मारामजी ने भी जैनत्वादर्श के आदि में ऐसे लिखा है किइस