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सो एक तो मूर्ति पूजक अर्थात् निरागीदेव जिनका जैन के शास्त्रों में षट् प्रकट परम त्यागी परम वैरागी पद काय रक्षक सर्वारम्भ परित्यागी इत्यादि कथन है सो उनकी मूर्ति बना के सरागी कुदेवों की मूर्तियों की तरह गहना, कपड़ा, फल, फूल आदि से पूजन का उपदेश करने वाले संवेगी कहाते हैं।
और दूसरे जो आत्मज्ञानी अर्थात् स्व आत्म पर आत्म, समदर्शी, सनातन शास्त्रों के अनुसार कठिन क्रिया के साधक और शांति, दांति शांति आदि का उपदेश करने वाले सो इंडिये कहाते हैं सोई पूर्वक । संवेगी साधु आत्मारामजी ने जैन तत्वादर्श ग्रन्थ छपाया है सो तिस ग्रन्थ को श्रवण करके अनेक जनों को ऐसी शंका उत्पन्न होती है।