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डाल के फिर उसका मोल करावेंगे अर्थात् नीलाम करावेंगे, देहरे पांचे तप उजमण करावेंगे, जिन विम्ब प्रतिष्ठा करावेंगे, इत्यादि घणे पाखंड होजावेंगे, उलटे पंथपड़ेंगे सो इस न्याय से साबित होता है कि यदि पहिले | यह क्रिया होती तो श्री५ भद्र बाहु स्वामी जी ऐसे क्यों कहते कि आगे को ऐसे क्रिया करने वाले होवेंगे ॥ __ और आजकल देखने में भी बहुलता आरहा है कि ज्ञान भंडारा नाम रक्ख के संवगी लोक मालकियत् करने लग गये हैं। क्योंकि आत्माराम जीने भी जैन तत्वादर्श ग्रंथके ४२७ पत्र पर लिखा है कि चैत्य द्रव्य की साधु रक्षा करे अर्थात् मालकियत् करे श्रावक को खाने न देवे, तर्क तो फिर माल
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