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और पूर्वक यति लोक ग्रन्थादि रचाते रहे और १९२० साल के लगभग सूत्रों की टीका रची गई सुनी जाती है और ऐसे ही श्री ५ सुधर्म स्वामीजी की परंपरा थी, विरुद्ध बाहुलता अन्य श्रद्धा और अन्य गच्छ अन्य समाचारी प्रवर्त्तक यति लोक बहुत होते रहे और यथार्थ सूत्रोक्तचारी थोड़े ही होते रहे क्योंकि श्री ५ भद्रबाहु स्वमीजी कृत कल्प सूत्र में श्री ५ भगवन्त महावीर स्वामीजी निर्वाण कल्याणक में कथन है " सत्कृत इन्द्र वक्तं भगवते श्री ५ महावीरेजन्मरासक्षुद्र भस्मरासी ग्रस्मागते इइ कारणात् जिन शासने दो सहस्स वर्षेनो उदय पूया भविस्सइ" तस्मात् कारणात् अनुमान १५३० के साल दो हजार वर्ष पूर्ण हुए थे कि नगर