Book Title: Gyandipika arthat Jaindyot
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Maherchand Lakshmandas

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ॥ श्री ॥ मत ज्ञानदीपिका जैन। 4.. - - - प्रस्तावना। इस ज्ञानदीपिकाजेन ग्रन्थ में कुछक तो स्वमत और परमत का कथन है और कुछक देव गुरु धर्म का कथन है और कुछक चतुर्गति रूप संसार का अनित्य स्वरूप आदिक उपदेश है और कुछक हिंसा मिथ्यादि त्याग रूप और दया क्षमादि ग्रहण रूप शिक्षा है । और इस अंन्थ का ग्रन्था अन्थ २००० दो हजार श्लोक का अनुमान प्रमाण है और जो बुद्धिमान पुरुप उपयोग सहित इस ग्रन्थ को आदि से अन्त तक पढेंगे तो अच्छा बोध रूप रस के लाभको प्राप्त करेंगे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 353