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क्योंकि खुले मुख से बोलने में सूक्ष्म जीवों की हिंसा हो जाती है और शास्त्र पर (पुस्तक पर) थूकें पड़जाती हैं । और इस ग्रन्थ को दीपक (दीवे) के आश्रय से न पढ़ना चाहिये क्योंकि दीपक में पतङ्ग आदिक अनेक जीव दग्ध हो कर प्राणान्त हो जाते हैं इस लिये दीपक स्मशान के तुल्य कहा जाता है तिस कारण ते जीव हिंसा से बच कर शुद्ध भाव से पक्षपात को छोड़ कर पढना चाहिये और इस ग्रन्थ के पूर्वा पर विचार से सत्यासत्य को जान कर इस दुःख बहुल संसार से छुटकारा पाने का उद्योग करना चाहिये।