Book Title: Gommatasara Karma kanda Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan View full book textPage 5
________________ ( ६ ) कर्मकाण्ड पाठ्यग्रन्थ है। पहले यह शास्त्री कक्षामें सम्पूर्ण था, किन्तु अब विषयोंकी बहुलता और पं, टोडरमलजी द्वारा विरचित टीकाकी अनुपलब्धिके कारण पठन-पाठनमें दुरूहताका अनुभव होने लगा इसलिए मात्र बन्धोदयसत्त्वाधिकार अर्थात् ३५७ गाथा तक रखा गया है। पठन-पाठन छूट जानेसे शेष भागसे प्राय: विद्वद्वर्ग और आधुनिक छात्र अपरिचित रह जाते हैं। श्री रतनचन्द्रजी मुख्तार पूर्वभवके संस्कारी जीव हैं। किसी पाठशाला या विद्यालय में क्रमिक अध्ययन न होनेपर भी इन्होंने मात्र स्वाध्यायके द्वारा सिद्धान्तग्रन्थोंमें अच्छा प्रवेश प्राप्त किया है। धवल, जयधवल तथा महाबन्ध ग्रन्थोंके संपादन और प्रकाशनमें सम्पादक विद्वानोंने आपकी सम्मतियों एवं सुझावोंको आदरपूर्वक स्वीकार किया है। आपने कर्मकाण्डके इस संस्करणका धवलादिग्रन्थोंके आलोड़न के पश्चात् सम्पादन किया है। प्रस्तुत संस्करणमें प्रत्येक विषयको संदृष्टियोंके द्वारा स्पष्ट किया है अतः स्वाध्याय- प्रेमियों तथा छात्रोंके लिये यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है। ▾ आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज आपकी अध्ययनशीलता, प्रतिभा और ग्रन्थसंपादनशक्तिसे सुपरिचित हैं इसीलिए १०५ आर्यिका आदिमतीजी द्वारा लिखित टीका का सम्पादन आपसे ! करवाकर कर्मकाण्ड के इस सुपरिष्कृत संस्करणके प्रकाशनकी योजना की है। आचार्यकल्पश्री श्रुतसागरजी महाराज भी यथानाम तथा गुण हैं। करणानुयोगमें आपका अच्छा प्रवेश है। प्रत्येक विषय को आपने भलीभाँति जमाकर रखा है। कर्मकाण्ड के प्रस्तुत संस्करण का प्रकाशन आपकी ही प्रेरणा का सुफल है। ज्ञात हुआ है कि मुख्तार साहब श्री रतनचन्द्रजी जीवकाण्ड का भी ऐसा संस्करण, टीका व सम्पादन सहित स्वयं तैयार कर रहे हैं। वृद्धावस्थामें उनकी इस श्रुताराधनाको देखकर हृदयमें बड़ी प्रसन्नता होती है। लब्धिसार- क्षपणासारका संशोधित परिष्कृत नवीन टीका सहित सम्पादन स्वयं मुख्तार साहब करचुके हैं जो इसी आचार्य शिवसागर दि. जैन ग्रन्थमाला, शांतिवीरनगर से शीघ्र प्रकाश्य है। आशा है विद्वान् सम्पादककी इन रचनाओं को विद्वज्जगत् में पूर्ण सम्मान प्राप्त होगा । आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराजका मुझपर अनुग्रह है कि वे शांतिवीरनगरसे प्रकाशित होनेवाले साहित्यपर कुछ पंक्तियाँ लिखनेका मुझे अवसर देते हैं, इस अनुग्रहके लिए मैं उनका अत्यन्त कृतज्ञ हूँ । सागर २-६-१९८० त्रिनीत पन्नालाल साहित्याचार्यPage Navigation
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