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< गीता दर्शन भाग-3
अभी तक उसने सोचा नहीं था कि क्या मांगेगा, क्योंकि उसे होगी, इसका कोई भरोसा नहीं। भरोसा ही नहीं था कि यह होने वाला है कि परमात्मा आकर कहेगा। संन्यासी वह है, जिसने फल का खयाल ही छोड़ दिया, जो आज आप भी होते, तो भरोसा नहीं होता कि परमात्मा आकर कहेगा। जी रहा है, यहीं। जितने लोग मंदिर में जाकर प्रार्थना करते हैं, किसी को भरोसा नहीं क्या आप सोच सकते हैं कि बिना फल के आप होता। कर लेते हैं। शायद! परहेप्स! लेकिन शायद मौजूद रहता है। | कर सकेंगे? अगर चोर को भरोसा न हो कि रुपए मिल सकेंगे;
तय नहीं किया था; बहुत घबड़ा गया। भागा हुआ पत्नी के पास | | तिजोरी लूट ही लूंगा, फल पा ही लूंगा; चोर चोरी करने जा आया। पत्नी से बोल कि कुछ चाहिए हो तो बोल। एक इच्छा तेरी सकेगा? असंभव है। आपके जीवन से बुरा कर्म तत्क्षण गिर पूरी करवा देता हूं। जिंदगीभर तेरा मैं कुछ पूरा नहीं करवा पाया। जाएगा, अगर आकांक्षा और फल की कामना गिर गई। फिर भी पत्नी ने कहा कि घर में कोई कड़ाही नहीं है। उसे कुछ पता नहीं था | जीवन की ऊर्जा काम करेगी। लेकिन तब प्रभु का हाथ बन जाती है कि क्या मामला है। घर में कड़ाही नहीं है; कितने दिन से कह रही | | जीवन की ऊर्जा, और वैसा प्रभु के हाथ बने हुए आदमी को कृष्ण हूं। एक कड़ाही हाजिर हो गई। वह आदमी घबड़ाया। उसने सिर संन्यासी कहते हैं। पीट लिया कि मूर्ख, एक वरदान खराब कर दिया! इतने क्रोध में आ गया कि कहा कि तू तो इसी वक्त मर जाए तो बेहतर है। वह मर गई। तब तो वह बहुत घबड़ाया। उसने कहा कि यह तो बड़ी यं संन्यासमिति प्राहयोग तं विद्धि पाण्डव। । मुसीबत हो गई। तो उसने कहा, हे भगवान, वह एक और जो इच्छा न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन ।। २ ।।
है बची है; कृपा करके मेरी स्त्री को जिंदा कर दें।
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इसलिए हे अर्जुन, जिसको संन्यास ऐसा कहते हैं, उसी को ये उनकी तीन इच्छाएं पूरी हुईं। उस आदमी ने दरवाजे पर लिख तू योग जान, क्योंकि संकल्पों को न त्यागने वाला कोई भी छोड़ा है कि वह कहावत ठीक है।
पुरुष योगी नहीं होता। हम जो मांग रहे हैं, हमें भी पता नहीं कि हम क्या मांग रहे हैं। वह तो पूरा नहीं होता, इसलिए हम मांगे चले जाते हैं। वह पूरा हो जाए, तो हमें पता चले। नहीं पूरा होता, तो कभी पता नहीं चलता 1 कल्पों को न त्यागने वाला पुरुष योगी नहीं होता है।
7 और संकल्पों को जो त्याग दे, वही संन्यासी है। कृष्ण कहते हैं, मांगो ही मत। क्योंकि जिसने तुम्हें जीवन दिया, संकल्प क्यों है हमारे मन में? संकल्प क्या है? इच्छा वह तुमसे ज्यादा समझदार है। तुम अपनी समझदारी मत बताओ। | हो, तो संकल्प पैदा होता है। कुछ पाना हो तो पाने की चेष्टा, कुछ डोंट बी टू वाइज। बहुत बुद्धिमानी मत करो। जिसने तुम्हें जीवन | पाना हो तो पाने की शक्ति अर्जित करनी होती है। संकल्प है वासना दिया और जिसके हाथ से चांद-तारे चलते हैं और अनंत जीवन | | को पूरा करने की तीव्रता, वासना को पूरा करने के लिए तीव्र जिससे फैलता है और जिसमें लीन हो जाता है, निश्चित, इतना तो | आयोजन। संकल्प विल है। जब मैं कुछ पाना चाहता हूं, तो अपने तय ही है कि वह हमसे ज्यादा समझदार है। और अगर वह भी | को दांव पर लगाता हूं। अपने को दांव पर लगाना संकल्प है। नासमझ है, तो फिर हमें समझदार होने की चेष्टा करनी बिलकुल | जुआरी संकल्पवान होते हैं। भारी संकल्प करते हैं। सब कुछ बेकार है।
| लगा देते हैं कुछ पाने के लिए। हम सब भी जुआरी हैं। मात्रा कृष्ण कहते हैं, उस पर छोड़ दो। तुम किए चले जाओ; सब उस कम-ज्यादा होती होगी। दांव छोटे-बड़े होते होंगे। लगाने की पर छोड़ दो।
सामर्थ्य कम-ज्यादा होती होगी। हम सब लगाते हैं। अपनी __ और बड़ा आश्चर्य तो यह है कि जो छोड़ देता है, वह सब पा | इच्छाओं पर दांव लगाना ही पड़ता है। सिर्फ जुआरी वही नहीं है, लेता है जो मिलने जैसा है। और जो नहीं छोड़ता—इस अरेबियन जिसकी कोई फलाकांक्षा नहीं है। वह जुआरी नहीं है। उसके पास कहावत में उस आदमी के हाथ में कड़ाही तो कम से कम हाथ लग | दांव पर लगाने का कोई सवाल नहीं है। कोई उसका दांव नहीं है। गई–लेकिन जो नहीं छोड़ता है, उसके हाथ में कड़ाही भी लगती | हम तो संकल्प करेंगे ही।
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