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Hriagwadav
मैंने पूछा-'कठोर कैसे कह रहे हैं आप? कठोर का मतलब?'
प्रोफेसर बोले-कितना कठोर है। साधु बनो, गुफा में चले जाओ, आहार-पानी छोड़ दो। जीवन को . समाप्त कर दो यह है जैन धर्म का मत।'
मैंने कहा-'आप प्राध्यापक हैं। नालंदा विद्यापीठ में पढ़ा रहे हैं। आपने यह कैसे समझा कि जैन धर्म ऐसा है? जैन धर्म में कहीं शरीर को सताने का, सुखाने का उपदेश नहीं है। जैन धर्म कहता है-तुम अहिंसा की साधना करो। उसमें कोई कष्ट आए तो उसे सहन कर लो, झेल लो।'
हम जो तपस्या करते हैं, उपवास करते हैं, वह शरीर को सताने के लिए नहीं, आनंद पाने के लिए है।
मैं यह मानता हूं-धर्म की साधना से आनंद का अनुभव न हो तो समझना चाहिए कि धर्म की साधना ठीक नहीं हो रही है। हर पल आनंद और प्रसन्नता का अनुभव होना चाहिए। वह नहीं है तो चिन्तन का विषय है।
__जैन धर्म में शरीर को सताने की बात बिल्कुल नहीं है। केवल शरीर को साधने की बात है। हम शरीर को साध लें। भ्रांति हो गई एक शब्द से। वह शब्द है कायक्लेश। उसका अर्थ कर दिया गया काया को कष्ट देना। उसका यह अर्थ नहीं है। उसका अर्थ है-शरीर को साधो। शरीर को इतना साधो कि तीन घंटा पद्मासन में बैठना हो तो बैठ सको। शरीर को ऐसा साधो कि एक मास खड़ा रहना हो तो रह सको। बाहुबली एक वर्ष तक खड़े रह गए। क्या कोई रह सकता है? पर उन्होंने शरीर को इतना साध लिया कि खड़े रह गए। शरीर को इतना साधो कि वर्षों तक साधना कर सको। वह कोई बाधा न डाले, सहयोगी बना
गाथा रहे। इसका मतलब है कायक्लेश, काया को साधना। सुख पाना चाहते हैं और शरीर को दुःख दें, यह कभी परम विजय की नहीं हो सकता।
सबसे पहली आवश्यकता है शरीरबल। जम्बूकुमार को वह बल प्राप्त था। जिसमें वज्रऋषभनाराच संहनन होता है, उसका मनोबल बहुत मजबूत होता है। उसे कोई विचलित नहीं कर सकता, डिगा नहीं सकता। साथ में भावना का बल भी था। उसे तीनों बल प्राप्त थे। वह हाथी से क्या डरेगा।
अलं वज्रशरीरस्य, दंतिनो विजयेन किम्।
अनुषंगादिहाख्यातं, नातिमात्रं किमप्यहो।। चारों ओर से यह ध्वनि गूंजने लगी-युवक! रास्ते से हट जाओ। कितना भयंकर हाथी है। सामने खड़े मत रहो। जम्बूकुमार उस ध्वनि को सुन ही नहीं रहे थे। महावीर को कितना कहा गया इस रास्ते से मत जाओ पर महावीर ने सुना-अनसुना कर दिया। वे उसी रास्ते से चले और उस स्थान पर पहुंच गए जहां चंडकौशिक सर्प रहता था।
जम्बूकुमार हटने की बात को सुनकर भी विचलित नहीं हुए। अभय, अडोल और निडर खड़े रहे। हाथी दौड़ता-दौड़ता जैसे ही जम्बूकुमार के निकट आया, पता नहीं क्या हुआ! क्या जादू किया! मंत्र फूंका! किसने शंख बजाया अथवा शंखनाद किया? हाथी अमद बन गया। सारा मद समाप्त हो गया। मदोन्मत्त हाथी शांत हो गया। जैसे गुरु के सामने शिष्य झुकता है, प्रणिपात करता है, हाथी जम्बूकुमार के सामने वैसे ही झुक गया।