Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 11
________________ गाथा परम विजय की ___ महावीर को इतना कष्ट दिया गया, किसी ने पछाड़ भी दिया पर हड्डियां नहीं टूटी। ऊपर से उछाल दिया, नीचे फेंक दिया फिर भी हड्डियां नहीं टूटीं। कारण क्या? उनके वज्रऋषभनाराच संहनन था। भगवान ऋषभ के दो पुत्र–भरत और बाहुबली। दोनों शक्तिशाली। एक चक्रवर्ती और एक बलवान। बाहुबली ने देखा-भरत जा रहा है, हाथी पर चढ़ कर जा रहा है। बाहुबली पीछे आ रहे थे, सोचा-यह हाथी पर चढ़ा हुआ है, मेरी ओर देख नहीं रहा है। बाहुबली दौड़े। भरत का पैर पकड़ा। हाथी से नीचे उतारा और ऐसा आकाश में उछाल दिया जैसे बच्चा गेंद को फेंकता है। भरत नीचे गिरने लगे। इतनी ऊंचाई से गिरे तो आज दस हड्डियां टूट जाएं। वे तो वज्रऋषभनाराच संहनन वाले थे। कुछ होने की संभावना नहीं थी पर बाहुबली ने सोचा-बड़ा भाई नीचे गिरा, कुछ हो गया तो पिताजी क्या कहेंगे? बांहें फैलाकर भाई को बांहों में थाम लिया। जिनका वज्रऋषभनाराच संहनन होता है, वह प्रवर शक्तिशाली होता है। जम्बूकुमार इस संहनन से संपन्न थे। शरीरबल, मनोबल, भावबल-ये तीन बल हैं। इनमें पहला है शरीरबल। यह बहुत आवश्यक है। बहुत लोग सोचते हैं हमें तो धर्म करना है। शरीर से क्या मतलब है? जो शरीरबल को बनाए नहीं रख सकता, उसका मनोबल भी कमजोर हो जाता है। आखिर मनोबल टिकता कहां है? आत्मा कहां टिकी हुई है? चेतना कहां टिकी हुई है? इस शरीर में टिकी हुई है। वह आधार है। पात्र अच्छा नहीं है, घड़ा फूटा हुआ है, पानी कैसे टिकेगा? इस शरीर में टिकी हुई हैं हमारी सारी विशेषताएं। शरीर दुर्बल और कमजोर है तो विशेषता कहां टिकेगी? ___ बहुत लोग सोचते हैं-जैन धर्म में शरीर को सताने की बात कही गई है। मैं मानता हूं कि यह बड़ी भ्रांति फैल गई। जैन धर्म इस पक्ष में नहीं है कि शरीर को सताओ। शरीर को सताना अज्ञान है। जिस शरीर से हमें काम लेना है, जिस शरीर में आत्मा जैसी ताकत रहती है, उसको सताने से क्या होगा? उसे सताने में क्या लाभ है? एक भ्रांत-धारणा बन गई। शरीर को सताना नहीं है, शरीर को मजबूत बनाना है, साधना के योग्य बनाना है और इतना शक्तिशाली बनाना है कि एक व्यक्ति दस दिन तक लगातार ध्यान कर सके, सोलह दिन तक लगातार ध्यान कर सके, मन को एकाग्र कर सके, मन पर काबू कर सके। ___ पूज्य गुरुदेव नालंदा पधारे। कुछ प्रोफेसर आए। बातचीत शुरू हुई। प्रोफेसरों ने कहा-'आचार्यश्री! जैन धर्म बड़ा कठोर धर्म है।' VIRA SmrI

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