Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 15
________________ ममात्मा ममलं शुद्ध श्री ज्ञानसमुच्चयसार की गाथा नं० ४४ के ४ और ४ मिलकर ८ होते हैं। इस गाथा के द्वारा श्री भारिल्लजी ने 'प्रष्ट प्रवचन' का सार और श्री कानजी स्वामी का उपकार स्मरण कराते हुए प्रात्मा की अद्भुत अनुभूति का रसास्वादन कराया है। तथा इसी महान ग्रन्थ की गाथा नं० ५६ के ५ और ६ मिलकर १४ होते हैं। इस गाथा के द्वारा आपने श्री तारण स्वामी के १४ ग्रन्थों का सार अमूर्त शुद्धात्मा को अपनी सहज सुन्दर शैली में श्रोता के ज्ञान में प्रतिष्ठित किया है । आपके ये प्रवचन एकत्व-विभक्त उस भगवान आत्मा की उपलब्धि में सबको सहायक - निमित्त बनकर स्वरूप में पहुंचने के लिए प्रकाश-स्तंभ का कार्य करेंगे। इस महान उपकार के लिए प्रत्येक मुमुक्षु प्रापका सदैव प्राभारी रहेगा। होशंगाबाद -७० जयसागर २१-४-८५

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