Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 90
________________ भगवान महावीर और उनकी अहिंसा इतिहास के पन्ने पलटकर तो देखो, धर्मानुराग के नाम पर ही लाखों यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया । हमारी आँखों के सामने होनेवाले हिन्दू-मुसलमानों के दंगे, सिया-सुनियों के दंगे धर्मानुराग के ही परिणाम हैं । दूर क्यों जाते हो, दिगम्बर-श्वेताम्बरों के झगड़ों के पीछे भी तो यही धर्मानुराग कार्य करता है। __ भाई ! अविवेक का भी कोई ठिकाना है ? हम अहिंसा धर्म की भी रक्षा जान की बाजी लगाकर करना चाहते हैं। जान की बाजी लगाने से अहिंसा धर्म की रक्षा नहीं होती है, हिंसा उत्पन्न होती है। अाज हम इस स्थूल सत्य को भी भूले जा रहे हैं । भाई ! धर्मानुराग धर्म का प्रकार नहीं, राग का प्रकार है: अतः । धर्म नहीं, राग ही है; धर्म तो एक वीतरागभाव ही है । भाई ! गजव हो गया है; वीतरागी जैनधर्म में भी आज राग को धर्म माना जाने लगा है। जब पानी में ही आग लग गई हो, तब क्या किया जा सकता है ? भगवान महावीर तो स्वयं वीतरागी थे, वे राग को धर्म कैसे कह सकते हैं ? भाई ! जब कोई वीतरागी बनता है तो सम्पूर्ण राग का प्रभाव करके ही बनता है, सबके प्रति राग तोड़कर ही बनता है; किसी के भी प्रति राग रखकर, कैसा भी राग रखकर वीतरागी नहीं बना जा सकता। भाई ! सीधी सी बात है कि यदि वीतरागता धर्म है तो राग अधर्म होगा ही। __ इतनी सीधी-सच्ची वान भी हमारी समझ में नहीं पाती। भाई ! पूर्वाग्रह छोड़े बिना यह बात समझ में नहीं आ सकती। भाई ! मैं एक बात कहूँ। बेटे तीन प्रकार के होते हैं । इसे हम इसप्रकार समझ सकते हैं : आप चार व्यक्ति किसी काम से मेरे घर पधारे। मैंने आपको पादरपूर्वक बिठाते हुए अपने बेटे को आवाज दी: "भाई, परमात्मप्रकाश ! एक गिलास पानी लाना।" आदत है न एक गिलास बोलने की; पर चतुर बेटा समझता है कि भले ही एक गिलास कहा है; पर अतिथि तो चार हैं न, और एक पिताजी भी तो हैं । इसप्रकार वह पाँच गिलास भरकर लाता है, साथ में एक भरा हमा जग (लोटा) भी लाता है; क्योंकि वह जानता है कि गर्मियों के दिन हैं,

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