Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 99
________________ डॉ. कमलेशकुमारजी जैन, दर्शनाचार्य, हिन्दू विश्वविद्यालय; वाराणसी अनुपम प्रतिभा के धनी विद्वद्वरेण्य डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से न केवल विद्वज्जगत को, अपितु सर्व साधारण को भी प्रभावित किया । श्री जिन तारणतरण स्वामी के ज्ञानसमुच्चयसार की केवल चार गाथाओं को लेकर उन्होंने जिस विद्वतापूर्ण शैली में 'गागर में सागर' को भरने का सफल प्रयास किया है; वह स्तुत्य है । डॉ. राजेन्द्रकुमार बन्सल, ओरियन्ट पेपर मिल्स, अमलाई (म.प्र.) डॉ. भारिल्ल बेजोड चिन्तक एवं प्रवचनकार हैं । वे साहित्य की सभी विधाओं के सिद्धहस्त लेखक हैं । प्रतिपाद्य विषय कितना ही दुरूह एवं गम्भीर क्यों न हो, उनकी तार्किक स्वनिर्मित उदाहरणों से युक्त प्रवचनकला से वह सरल, सरस एवं सुगम बनकर हर स्तर के श्रोता के लिये बोधगम्य हो जाता है । समग्र रूप से 'गागर में सागर पुस्तक 'यथानाम - तथागुण की लोकोरित को चरितार्थ करने वाली है, प्रतिपाद्य विषय सामग्री शुद्ध आध्यात्मिक है तथा शुद्धोपयोग की ओर प्रेरित करती है । पुस्तक की छपाई जिल्द आदि चित्ताकर्षक है। प्रस्तुत पुस्तक सरल, पठनीय, मननीय एवं संग्रहणीय है । विश्वास है कि अध्यात्म जगत के अलावा अन्य व्यक्ति भी पुस्तक का पठन कर अपनी चिन्तन प्रक्रिया एवं दिशा में नये आयाम का सूत्रपात करेंगे । लेखक एवं प्रकाशक साधुवाद के पात्र हैं । डॉ. विजय कुलश्रेष्ठ, प्राध्यापक कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल ; कम से कम शब्दों में अधिकाधिक कह देने की प्रवृत्ति को चरितार्थ करते हुए डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के प्रवचनों का यह सम्पादित संकलन जैन दर्शन की गूढता को जिस भांति सहजता एवं सरलता के साथ प्रस्तुत करता है, वही श्रेयस है, उपादेय है और गहन चिन्तन की सुबोध अभिव्यक्ति भी है । 1

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