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अभिमत
व्रतियों, विद्वानों एवं लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं की दृष्टि में प्रस्तुत प्रकाशन
वयोवृद्धव्रती विद्वान ब्र. पण्डित जगन्मोहनलालजी शास्त्री ; कटनी
यह पुस्तक श्री तारणस्वामीजी के ज्ञान समुच्चयसार की चार गाथाओं पर डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के प्रवचन रूप में निबद्ध हैं । ये गाथाएँ जिनागम के सारभूत हैं । डॉ. भारिल्ल ने सुन्दर चित्रण कर उसके भावों को निखारा है । अतः यह गागर में सागर या प्रकारान्तर से सागर की गागर है ।
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पण्डित नन्हेलालजी जैन सिद्धान्तशास्त्री; ललितपुर (उ.प्र.)
डॉ. भारिल्ल ने उक्त पुस्तक रूपी गागर में अध्यात्म अमृत रूपी रस के सागर को भरकर एक अपूर्व नवीन मार्ग प्रदर्शित किया है । प्रतिपादित विषय को उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली से अच्छी तरह बैठाया है । भारिल्लजी जैन समाज के ही नहीं बल्कि देश-विदेश की मंजी हुई प्रगतिशील विभूति हैं । मैं उनके अनुभवपूर्ण ज्ञान गरिमा और पटुता की भूरिभूरि प्रशंसा करता हूँ ।
पण्डित राजकुमारजी शास्त्री निवाई (राज.)
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पुस्तक की साज-सज्जा बहुत सुन्दर है । विषय भी अच्छा और लेखन की प्रक्रिया भी भारिल्लजी की प्रभावक व ह्रदयग्राही है । पुस्तक पढने योग्य है ।
पण्डित प्रकाशचन्दजी 'हितैषी' शास्त्री, सम्पादक-सन्मति सन्देश ; दिल्ली 'गागर में सागर कृति में आध्यात्मिक संत श्री तारणस्वामी के भावों का बहुत ही सरल, सरस और सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।
डा. भारिल्ल आध्यात्मिक जैसे रूक्ष और दुरूह विषय को इतना सरल, सुबोध एवं रोचक बना देते हैं कि अध्यात्म में