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गागर में सागर
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जनता गली-गली में नारे लगाती है कि हत्यारी सरकार स्तीफा दे । वाढ़ में हुए विनाश पर सरकार को कोई हत्यारा नहीं कहता ।
भारतीय जनता इस तथ्य से भली-भाँति परिचित है, उसके रोम-रोम में यह सत्य समाया हुआ है, उसके अन्तर में अहिंसा के प्रति एक गहरी आस्था आज भी विद्यमान है ।
इसका प्रत्यक्ष प्रमारण यह है कि भोपाल (म. प्र. ) की गैस दुर्घटना में हजारों लोगों के मर जाने के बाद भी वहाँ शासक दल ने दो-तिहाई से भी अधिक बहुमत प्राप्त किया; किन्तु राजस्थान में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति के मर जाने पर मुख्यमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ा ।
श्रीमती इन्दिरा गाँधी की श्रमानुषिक हत्या पर जनता की यही प्रतिक्रिया रही । भारतीय जनता ने उनकी अमानुषिक हत्या अर्थात् हिंसा के विरुद्ध चुनाव में अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया । परिणामस्वरूप इन्दिरा कांग्रेस को अभूतपूर्व विजय प्राप्त हुई । इस सत्य से सभी भली-भाँति परिचित हैं कि यदि श्रीमती इन्दिरा गाँधी स्वयं चुनाव लड़तीं तो इतना बहुमत उन्हें भी मिलनेवाला नहीं था ।
वस्तुत: यह इन्दिरा कांग्रेस या श्री राजीव गाँधी की जीत नहीं, हिंसा के विरुद्ध अहिंसा की जीत है । भारतीय जनता ने स्पष्ट रूप से हिंसा के विरुद्ध अहिंसा के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया है ।
इससे प्रतीत होता है कि बहुत गहराई में जाकर भारतीय जनता आज भी भगवती अहिंसा की आराधक है, उसकी रग-रग में भगवती अहिंसा उसीप्रकार समाई हुई है, जिसप्रकार तिल में तेल और दूध में घी ।
प्राकृतिक विनाश भारतीय जनता के चित्त को करुणा-विगलित तो करता है, उसमें एक संवेदना पैदा तो करता है; पर वह उसके चित्त को उद्वेलित नहीं करता, आन्दोलित नहीं करता; किन्तु बुद्धिपूर्वक की गई हिंसा से वह प्रान्दोलित हो जाता है, उद्वेलित हो जाता है, वह भड़क उठता है ।
हत्याओं के प्रति यह श्राक्रोश भारतीय जनता की हिंसा में गहरी आस्था को ही व्यक्त करता है ।
भारतीय जनता की श्रहिंसा के प्रति गहरी समझ एवं दृढ़ प्रास्था को समझने के लिए हमें उसके अन्तर में उतरना होगा, उसके व्यवहार