Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 91
________________ गागर में सागर ६१ कोई दो गिलास पानी भी पी सकता है; कोई दूध या चाय तो है नहीं, जो माँगने में संकोच करेगा । दूसरा बच्चा वह है, जो मात्र एक गिलास ही पानी लाता है । टोकने पर जवाब देता है कि आपने ही तो कहा था कि एक गिलास पानीलाना । बड़ा आज्ञाकारी है न ? जब एक गिलास कहा था तो अधिक कैसे ला सकता था ? तीसरा वह है, जो आधा गिलास पानी ही लाता है । पूँछने पर उत्तर देता है कि 'मैंने सोचा - छलक न जाय, झलक न जाय ।' भाई ! हम सभी भगवान महावीर की सन्तान हैं । अत्र जरा विचार कीजिए कि हम भगवान महावीर के कौन से बेटे हैं :- पहले, दूसरे या तीसरे ? भगवान ने कहा था :- "रागादिभाव हिंसा हैं । " उनके इस कथन का आशय पहला बेटा यह समझता है कि सभी प्रकार का शुभाशुभ, मंद-तीव्र राग तो हिंसा है ही, साथ में द्वेषादि भाव भी हिंसा ही हैं । दूसरे बेटे वे हैं, जो कहते हैं कि हम तो अकेले राग को ही हिंसा मानेंगे, क्योंकि स्पष्ट रूप से तो राग का ही उल्लेख है । उनसे यदि यह कहा जाय कि 'राग' के साथ 'आदि' शब्द का भी तो प्रयोग है तो कहते हैं कि है तो, पर यह कैसे माना जाय कि यदि से द्वेषादि ही लेना, सम्यग्दर्शनादि नहीं । तीसरे वे हैं, जो कहते हैं कि भगवान ने यदि राग को हिंसा कहा है तो हमने प्रशुभराग- तीव्रराग को हिंसा मान तो लिया । वह जरूरी थोड़े ही है कि हम सम्पूर्ण राग को हिंसा मानं । लिखा भी तो केला रागादि ही है, यह कहाँ लिखा कि सभी रागादि हिंसा हैं ? से अब ग्राप ही निश्चित कीजिए कि आप भगवान महावीर के कौन पुत्र हैं :- पहले, दूसरे या तीसरे ? मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है । यह निर्णय मैं आप सब पर ही छोड़ता हूँ | इसप्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीर ने हिंसा और ग्रहिंसा के स्वरूप के स्पष्टीकरण में राग शब्द का प्रयोग बहुत व्यापक अर्थ में किया है, सभी प्रकार का राग तो उसमें ममाहित है ही, राग के ही प्रकारान्तर द्वेषादि परिणाम भी उसमें समाहित हैं ।

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