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गागर में गागर
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जगत से दृष्टि हटाकर निज भगवान आत्मा को ही देख । पर अज्ञानी को तो यह खवर ही नहीं है कि आत्मा कहाँ है ? अतः वह कहाँ देखे ?
__ आचार्यदेव करुणा करके उससे कहते हैं कि वह भगवान आत्मा देह-देवालय में विराजमान है, उधर देख !
अब मैं आपसे ही पूछता हूँ कि अज्ञानी किसे देखे ? देह को या प्रात्मा को?
यदि देह की अोर न देखें तो प्रात्मा कैसे दिखाई देगा ? क्योंकि भगवान अात्मा तो देह-देवालय में ही विराजमान है। मन्दिर में विराजमान भगवान के दर्शन करना हो तो मन्दिर में जाना ही होगा।
हाँ, जाना होगा, अवश्य जाना होगा; जाना भी होगा और मन्दिर को देखना भी होगा; पर मन्दिर को ही देखता रहेगा तो भगवान के दर्शन नहीं होंगे । यदि भगवान के दर्शन करना है तो मन्दिर को देखकर मन्दिर में ही रहकर मन्दिर को देखना बन्द करके भगवान को देखना होगा, तभी भगवान के दर्शन होंगे।
इसीप्रकार देह-देवल में विराजमान भगवान आत्मा के दर्शन करने के लिए देह को भी देखना होगा, देह को देखकर, देह को देखना बन्द करके उसी में विद्यमान भगवान आत्मा को देखना होगा।
देह को देखने में भी देह को देखना उद्देश्य नहीं है, भगवान आत्मा को देखना ही उद्देश्य है । अतः देह को देखने के उपरान्त देह को देखना बन्द करके, जव वहीं विद्यमान भगवान आत्मा को गहराई से देखने का रुचिपूर्वक प्रवल पुरुषार्थ करेगा तो भगवान आत्मा के दर्शन अवश्य होंगे।
भगवान आत्मा की झलक मिलने के बाद अत्यन्त रुचिपूर्वक उसी को निहारता रहे, निहारता रहे; तबतक निहारता रहे, जबतक कि देह की सत्ता का आभास ही समाप्त न हो जाये, बस एक भगवान आत्मा ही प्रात्मा न दिखाई देता रहे।
यह सब असंभव नहीं है । तीव्रतम रुचिवाले उग्र पुरुषार्थी के लिए सब-कुछ संभव है। जब विषय-कषाय की रुचिवाले कामी जीव साड़ी में लिपटी युवती की देह को साड़ी से भिन्न देख लेते हैं, जान लेते हैं, तो