________________
गागर में सागर
७१
भाई ! आज हम बारूद के ढेर पर बैठे हैं, कहीं से भी कोई एक चिनगारी उठे और सारी दुनिया क्षरणभर में तबाह हो जाय - इस स्थिति में पहुँच गये हैं । प्राज हिंसा इतनी खतरनाक हो उठी है, अत: भगवान महावीर की अहिंसा की आवश्यकता भी आज जितनी है, उतनी महावीर के जमाने में भी नहीं थी । भाई ! इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि महावीर आउट ऑफ डेट नहीं हुये हैं, अपितु एकदम अप टू डेट हैं ।
रामायण की लड़ाई छह माह चली थी; पर उसमें मरनेवालों की संख्या हजारों ही थी, लाखों नहीं । महाभारत की लड़ाई मात्र अठारह दिन चली थी; उसमें भी मरनेवालों की संख्या लाखों ही थी, करोड़ों नहीं; पर आज का असली युद्ध यदि अठारह सैकण्ड ही चल जाय तो मरने वालों की संख्या हजारों नहीं, लाखों नहीं; करोड़ों नहीं; अरबों होगी, असंख्य होगी, अनन्त होगी ।
पहले के जमाने में युद्ध के मैदान में सिपाही लड़ते थे और सिपाही ही मरते थे; पर आज युद्ध सिपाहियों तक ही सीमित नहीं रह गया है, युद्ध मैदानों तक ही सीमित नहीं रह गया है; आज उसकी लपेट में सारी दुनिया आ गयी है । आज की लड़ाइयों मे मात्र सिपाही ही नहीं मरते, किसान भी मरते हैं, मजदूर भी मरते हैं, व्यापारी भी मरते हैं, खेतखलियान भी बर्बाद होते हैं, कल-कारखाने भी नष्ट होते हैं, बाजार और दुकानें भी तबाह हो जाती हैं। अधिक क्या कहें, आज के इस युद्ध में हिंसा की बात कहनेवाले हम जैसे पण्डित और साधुजन भी नहीं बचेंगे, मन्दिर-मस्जिद भी साफ हो जायेंगे । आज के युद्ध सर्वविनाशक हो गये हैं । आज हिंसा जितनी भयानक हो गयी है, भगवान महावीर की हिंसा की आवश्यकता भी आज उतनी ही अधिक हो गयी है ।
इस स्थिति में भगवान महावीर को आउट ऑफ डेट कहना, अनुपयोगी कहना कहाँ तक उचित है ? - यह विचारने की बात है ।
आज की लड़ाइयाँ बड़ी वीतरागी लड़ाइयाँ हो गयी हैं । पहिले की लड़ाइयों में मारनेवालों को भी पता रहता था कि मैंने किसको मारा है और मरनेवालों को भी पता रहता था कि मुझे कौन मार रहा है; पर ग्राज न मरनेवालों को पता है कि मुझे कौन मार रहा है, न मारने वालों को ही पता है कि मैं किसे मारने जा रहा हूँ ।
ऊपर से राम बम फेंकता है और नीचे उसी का भाई लक्ष्मरण मर जाता है और मन्दिर साफ हो जाता है । ऊपर से रहीम बम फेंकता है