Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 75
________________ गागर में सागर ७५ में यह क्यों नहीं कहते कि दुनियाँ में मारकाट का होना हिंसा है और दुनियाँ में मारकाट का नहीं होना ही अहिंसा ? - यह हिंसा-अहिंसा की सीधी-सच्ची सरल परिभाषा है, जो सबकी समझ में सरलता से आ सकती है; व्यर्थ ही वाग्जाल में उलझाकर उसे दुरूह क्यों बनाया जाता है ? भाई ! ऐसी बात नहीं है । भगवान महावीर द्रव्यहिंसा को भी स्वीकार करते हैं । उनके आशय को हमें गहराई से समझना होगा । यह तो आप जानते ही हैं कि हिंसा तीन प्रकार से होती है :- मन से, वचन से और काया से । काया की हिंसा को तो सरकार रोकती है । यदि कोई किसी को जान से मार दे तो उसे पुलिस पकड़ लेगी, उस पर मुकदमा चलेगा और फांसी की सजा होगी । फांसी की सजा न हुई तो आजीवन कारावास होगा । न मारे, पीटे तो भी पुलिस पकड़ेगी, मुकदमा चलेगा और दो-चार वर्ष की सजा होगी; पर यदि कोई किसी को वाणी से मारे अर्थात् जान से मारने की धमकी दे, गालियाँ दे, भला-बुरा कहे तो सरकार कुछ नहीं कर सकती । एक बार मैं पुलिस थाने में गया । वहाँ उपस्थित पुलिस इंस्पेक्टर से मैंने कहा : " इंस्पेक्टर साहब ! अमुक व्यक्ति मुझे जान से मारने की धमकी देता है, मुझे जान का खतरा है ।" तब वे बोले :- . "इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?" मैंने कहा :- "क्या कहा, आप क्या कर सकते हैं ? अरे भाई ! आप इन्तजाम कीजिये | ऐसा कीजिये कि दो सिपाही मेरे साथ कर दीजिये ।" वे मुस्कराते हुए बोले : "भाई ! यदि हर सामान्य व्यक्ति के साथ दो पुलिसवाले लगाने लगें तो आप जानते हैं कि भारत में साठ करोड़ आदमी रहते हैं, अतः एक अरब और बीस करोड़ पुलिसवाले चाहिये । बोलो, इतनी पुलिस कहाँ से लायें ?" I मैंने कहा :- "यह तो आप ठीक ही कहते हैं; पर मैं क्या करू ? मुझे तो जान का खतरा है ।" बड़ी ही गंभीरता से वे कहने लगे :

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