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गागर में सागर
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गई ! ये माताएँ-बहिनें हैं न; बड़ी धर्मात्मा, इतनी धर्मात्मा कि प्रातःकाल उठेगी तो स्वयं नहायेंगी, गाय को नहायेंगी, बाल्टी को नहायेंगी; उसमें निकला दूध पियेंगी । सोचो आप, कितनी धर्मात्मा होंगी? ___ माघ का महीना हो, भयंकर सर्दी पड़ रही हो, माँ रसोई बना रही हो और उसका दो वर्ष का बालक चौके के बाहर रो रहा हो, माँ के पास जाना चाहता हो; पर माँ कहती है :
"यदि मेरे पास चौके में आना हो तो कपड़े खोलकर श्रा, अन्यथा मेरा चौका अपवित्र हो जायगा ।"
बच्चा यदि कपड़े खोलता है तो निमोनिया हो जाने का अंदेशा है और कपड़ा नहीं खोलता है तो माँ के पास जाना संभव नहीं है। आखिर बेचारा करे तो क्या करे ? अन्त में होता यही है कि वह वालक चौके की सीमा-रेखा का बार-बार उसीप्रकार उल्लंघन करता है, चौके की सीमा पर बार-बार उसीप्रकार छेड़खानी करता है, जिसप्रकार पाकिस्तान काश्मीर की सीमा पर किया करता है ।
तथा जिसप्रकार भारत सरकार बार-बार कड़े विरोधपत्र भेजा करती है, उसीप्रकार वह धर्मात्मा माँ भी बार-बार धमकियाँ दिया करती है कि यदि कपड़े खोले बिना चौके की सीमा में प्रवेश किया तो जिन्दा जला दूंगी, जिन्दा । चूले में से जलती हुई लकड़ी निकालकर बच्चे को बार-बार दिखाती हुई धमकाती है, कहती है :
"देख ! यदि कपड़े खोले बिना अन्दर पांव भी रखा तो समझ ले कि जिन्दा जला दूंगी, जिन्दा.................."
अब मैं आपसे ही पूछता हूँ कि यदि वह बच्चा पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखाये कि मेरी माँ मुझे जिन्दा जलाने की धमकी देती है तो क्या पुलिसवाले उस मां को भी गिरफ्तार कर लें? शायद यह आपको भी स्वीकृत न होगा।
भाई ! जो मां अपने बच्चे को जिन्दा जलाना तो दूर, यदि स्वप्न में भी उसकी मात्र अंगुली जलता देख ले तो बेहोश हो जाय, वह मां भी जब वाणी से इतनी हत्यारी हो सकती है तो फिर दूसरों की क्या कहना? अतः कानून तो ठीक ही है कि वह वाणी की इस हिंसा को नजरन्दाज ही करता है; पर बात यह है कि भले ही सरकार न रोके, पर वाणी की हिंसा भी रुकना तो चाहिए ही।